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राष्ट्रपति प्रणाली

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राष्ट्रपति प्रणाली क्या है। राष्ट्रपति प्रणाली ........................………….............................. दुनिया में हर जगह राष्ट्रपति भारत की तरह औपचारिक शासन अध्यक्ष नहीं होता। दुनिया के अनेक देशों में राष्ट्रपति आष्टा अध्यक्ष भी होता है और सरकार का मुखिया भी। अमेरिकी राष्ट्रपति इस तरह के राष्ट्रपति का जाना माना उदाहरण है। उसका चुनाव लोग प्रत्यक्ष वोट से करते हैं। वही अपने मंत्रियों का चुनाव और नियुक्ति करता है। कानून बनाने का काम अभी भी विधायका (अमेरिका में उसे कांग्रेश कहा जाता है) करती है पर राष्ट्रपति किसी भी कानून को वीटो के अधिकार से रोक सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि राष्ट्रपति बनने के लिए उसे कांग्रेश के बहुमत के समर्थन की जरूरत नहीं होती और ना ही वह उसके प्रति उत्तरदाई हैं। उसका 4 साल का तरीका निकाल है और अपनी पार्टी का कांग्रेस में बहुमत न होने पर भी वो आराम से अपना कार्यकाल पूरा करता है। अमेरिकी मॉडल को लातीन अमेरिका के अनेक देशों और सोवियत संघ का हिस्सा है कई देशों मैं अपनाया गया है। क्योंकि सरकार के इस स्वरूप में राष्ट्रपति की भूमिका केंद्रीय होती है इसलिए

राष्ट्रपति की नियुक्ति

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  पिछली पोस्ट में आप लोगों ने राष्ट्रपति के अधिकारों के बारे में जाना था। आज की पोस्ट में जानेंगे कि राष्ट्रपति की नियुक्ति कैसे होती है।   राष्ट्रपति का चयन जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से नहीं किया जाता। संसद सदस्य और राज्य की विधानसभाओं के सदस्य उसे चुनते हैं। राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी को चुनाव जीतने के लिए बहुमत हासिल करना होता है। इससे यह तय हो जाता है कि राष्ट्रपति पूरे राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है। लेकिन राष्ट्रपति उस तरह के प्रत्यक्ष जनादेश का दावा नहीं कर सकता जिस तरह से प्रधानमंत्री। इससे यह तय हो जाता है कि राष्ट्रपति कहने मात्र के लिए कार्यपालक की भूमिका निभाता है। ‌‌ राष्ट्रपति के बारे में कुछ और महत्वपूर्ण बातें। एक और जहां प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है, वहीं राष्ट्रपति राष्ट्रध्यक्ष होता है। हमारी राजनीतिक व्यवस्था में राष्ट्राध्यक्ष केवल नाम के अधिकारों का प्रयोग करता है। राष्ट्रपति देश की सभी राजनीतिक संस्थाओं के काम की निगरानी करता है ताकि वे राज्य के उद्देश्य को हासिल करने के लिए मिलजुल कर काम करें।  :- दोस्तों अगर इस पोस्ट में कोई गलती थी कि हो तो कमेंट में

राष्ट्रपति के अधिकार

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  अगर आप संविधान को सरसरी तौर पर पड़े तो आप सोचेंगे कि ऐसा कुछ नहीं है जो राष्ट्रपति ना कर सके ‌। सारी गतिविधियां राष्ट्रपति के नाम पर ही होती हैं। सारे कानून और सरकार के प्रमुख नीतिगत फैसले उसी के नाम पर जारी होते हैं। सभी प्रमुख नियुक्तियां राष्ट्रपति के नाम पर ही होती हैं। वह भारत के मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय, और राज्य के उच्च न्यायालय न्यायाधीश और राज्यपालों चुनाव आयुक्तों और दूसरे देशों में राजदूत तो आदी को नियुक्त करता है। सभी अंतरराष्ट्रीय संध्या और समझौते उसी के नाम से होते हैं। भारत के रक्षा बलों का सुप्रीम कमांडर राष्ट्रपति ही होता है।    लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि राष्ट्रपति इन अधिकारों का इस्तेमाल मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही करता है। राष्ट्रपति मंत्री परिषद को अपनी सलाह पर पुनर्विचार करने के लिए कह सकता है। लेकिन अगर वहीं सलाह दोबारा मिलती है तो वह उसे मानने के लिए बाध्य होता है। इसी प्रकाश संसद द्वारा पारित कोई भी विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही कानून बनाता है। अगर राष्ट्रपति चाहे तो उसे कुछ समय के लिए रोक सकता है। या विधेयक पर पुनर्विचार के लिए उसे संसद