राष्ट्रपति के अधिकार
अगर आप संविधान को सरसरी तौर पर पड़े तो आप सोचेंगे
कि ऐसा कुछ नहीं है जो राष्ट्रपति ना कर सके । सारी गतिविधियां राष्ट्रपति के नाम पर ही होती हैं। सारे कानून और सरकार के प्रमुख नीतिगत फैसले उसी के नाम पर जारी होते हैं। सभी प्रमुख नियुक्तियां राष्ट्रपति के नाम पर ही होती हैं। वह भारत के मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय, और राज्य के उच्च न्यायालय न्यायाधीश और राज्यपालों चुनाव आयुक्तों और दूसरे देशों में राजदूत तो आदी को नियुक्त करता है। सभी अंतरराष्ट्रीय संध्या और समझौते उसी के नाम से होते हैं। भारत के रक्षा बलों का सुप्रीम कमांडर राष्ट्रपति ही होता है।
लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि राष्ट्रपति इन अधिकारों का इस्तेमाल मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही करता है। राष्ट्रपति मंत्री परिषद को अपनी सलाह पर पुनर्विचार करने के लिए कह सकता है। लेकिन अगर वहीं सलाह दोबारा मिलती है तो वह उसे मानने के लिए बाध्य होता है। इसी प्रकाश संसद द्वारा पारित कोई भी विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही कानून बनाता है। अगर राष्ट्रपति चाहे तो उसे कुछ समय के लिए रोक सकता है। या विधेयक पर पुनर्विचार के लिए उसे संसद में वापस भेज सकता है। लेकिन अगर संसद दोबारा विधेयक पारित करती है तो उसे उस पर हस्ताक्षर करने ही पड़ेंगे।
तो आप सोच रहे होंगे कि राष्ट्रपति करता क्या है? क्या वह अपने विवेक से भी कुछ कर सकता है? एक महत्वपूर्ण चीज है जो उसे स्वविवेक से करनी चाहिए: प्रधानमंत्री की नियुक्ति। जब कोई पार्टी या गठबंधन चुनाव में बहुमत हासिल कर लेता है तो राष्ट्रपति के पास कोई विकल्प नहीं होता। उसे लोकसभा में बहुमत वाली पार्टी या गठबंधन के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करना होता है। जब किसी पार्टी या गठबंधन को लोकसभा में बहुमत हासिल नहीं होता तो राष्ट्रपति अपने विवेक से काम लेता है ।वह ऐसे नेता को नियुक्त करता है जो उसकी राय में लोकसभा में बहुमत जुटा सकता है। ऐसे मामले में राष्ट्रपति नव नियुक्ति प्रधानमंत्री से एक तय समय के भीतर लोकसभा में बहुमत साबित करने के लिए कहता है।
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