भगवान विष्णु को कमलनयन क्यों कहा जाता है?

 भगवान विष्णु के कमलनयन कहे जाने की कथा


"कमलनयन" शब्द का उपयोग भगवान श्रीकृष्ण के विविध संस्कृतिक और धार्मिक अभिवादनों में किया जाता है। यह शब्द उनके आदर्शवान और सुंदर आँखों की स्तुति के रूप में प्रयुक्त होता है। यह शब्द उनकी आंखों की सुंदरता, माधुर्य और शक्ति को संकेतित करता है।भगवान श्रीकृष्ण का जन्म दिव्य और चमत्कारी था, और उनकी आँखों की सुंदरता और आकर्षण की कहानियां पुराने पौराणिक ग्रंथों में मिलती हैं। इन ग्रंथों में श्रीकृष्ण की आँखों को "कमलनयन"  के रूप में वर्णित किया गया है, जिससे उनकी दिव्यता और माधुर्य का संकेत मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण के चरित्र, व्यक्तित्व और लीलाएं उनके भक्तों के बीच एक गहरे संबंध की बुनाई करती हैं, और उनकी आँखों की अत्यंत माधुर्य इस बात का प्रतीक होती है कि वे हमें आनंद, प्रेम और शांति की ओर ले जाने वाले दिव्य मार्ग के प्रतिष्ठान हैं।इस प्रकार, "कमलनयन" शब्द भगवान श्रीकृष्ण के सुंदर आँखों की महत्वपूर्ण विशेषता को दर्शाता है और उनके भक्तों के दिल में उनके प्रति भक्ति और स्नेह की भावना को उत्तेजित करता है।

"श्री हरिवंश पुराण" में वर्णित है, जो भगवान विष्णु और भगवान शिव के बीच एक रोमांचक कथा है। यह कथा भगवान विष्णु के वामन अवतार की है, जब वे त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध करने के लिए महादेव रूप में प्रकट होते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, राक्षसों के अत्याचार से परेशान होकर देवताओं ने भगवान विष्णु से इनका अंत करने की प्रार्थना की। बैकुंठ पति भगवान विष्णु बैकुंठ से वाराणसी आए और ब्रह्ममुहूर्त में मणिकार्णिका घाट पर स्नान करके एक हजार कमल पुष्पों से भगवान शिव की अराधना आरंभ किया। वे मंत्रोच्चार के साथ कमल पुष्प शिवलिंग पर चढ़ाने लगे। जब 999 कमल पुष्प चढ़ाए जा चुके तो भगवान विष्णु चौंके, क्योंकि हजारवां कमल पुष्प गायब था। विष्णु ने काफी ढूंढा पर वह पुष्प नहीं मिला।वह पुष्प भगवान शिव ने भगवान विष्णु की परीक्षा लेने के लिए छिपा लिया था। जब भगवान विष्णु ने फूल काफी ढूंढा लेकिन जब वो नहीं मिला तो विष्णु ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कमल के फूल की जगह अपनी एक कमल की पंखुड़ियों के सामान सुन्दर आंख निकालकर चढ़ाई। जब श्री विष्णु ने शिवलिंग पर अपना नेत्र चढ़ा दिया। यही वजह है की भगवान विष्णु को कमल नयन कहा जाता है।

भगवान विष्णु के अन्य नाम

पुरुषोत्तम, ऋषिकेश, मानव, केशव, दामोदर,वामन, गोविन्द, श्रीधर, बैकुंठ इत्यादि।

भगवान विष्णु के अवतार

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

  अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।

  परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।

  धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।

श्रीमद्भागवत पुराण में भगवान विष्णु की 22 अवतारों के बारे में बताया गया है। जिम दशावतार प्रमुख हैं। कुछ पुराने में भगवान की 24 अवतारोंके बारे में भी वर्णन किया गया है।

दशावतार का वर्णन गरुणपुराण में भी मिलता है। 

भगवान की दशावतार निम्न है

मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि अवतार ।

भगवान विष्णु के अन्य 24 अवतार।

1- श्री सनकादि मुनि: सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार नामक 4 कुमार, जो कि सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्माजी से प्रकट हुए.2- मत्स्यावतार3- नारद मुनि: ब्रह्माजी के मानस पुत्र4- नर-नारायण: ब्रह्मदेव के प्रपौत्र, धर्म और रुचि के जुड़वां पुत्र5- कपिल मुनि

6- दत्तात्रेय: इनमें ‘त्रिदेव’ यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश का रूप मिलता है.7- कूर्म (कछुआ): समुद्र मंथन कराने के लिए यह अवतार लिया.8- धनवंतरि: समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश लेकर प्रकट हुए.9- मोहिनी: समुद्र मंथन के बाद देवताओं को अमृत पिलाया.10- यज्ञावतार11- आदिराज पृथु12- वराहवतार13- नरसिंहावतार 

14- हयग्रीव अवतार15- वामन

16- श्री हरि17- परशुराम18- वेदव्यास19- ऋषभदेव20- हंसावतार

21- श्री राम22- श्री कृष्ण: 16 कलाओं से युक्‍त, यही भगवान विष्‍णु के पूर्णावतार माने गए हैं.23- बुद्ध अवतार24- कल्कि अवतार: कलयुग के अंतिम चरण में धरती पर प्रकट होंगे.

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