हम कैसे सुनते हैं?

दोस्तों आज हम बताने वाले हैं आखिरकार हम अपने कानों की सहायता से सुनते कैसे हैं? तो चलिए शुरू करते हैं।

हम एक अतिसंवेदी युक्ति जिसे कान कहते हैं, की सहायता से सुन पाते हैं। यह श्रवण व्यक्तियों द्वारा वायु में होने वाले दाग परिवर्तनों को विद्युत संकेतों में बदलता है जो श्रवण तंत्रिका से होते हुए मस्तिष्क तक पहुंचते हैं। मानव कान द्वारा सुनने की प्रक्रिया के पक्ष  के बारे में हम यहां चर्चा करेंगे।

बाहरी कान 'कर्ण पल्लव ' कहलाता है । यह परिवेश से धन को एकत्रित। एकत्रित ध्वनि श्रवण नलिका से गुजरती है। श्रवण नलिका से सिर पर एक पतली झिल्ली होती है जिसे करण पत्ता है या कर्ण पटल झिल्ली कहते हैं। जब माध्यम के संपीडन करण पटेल तक पहुंचते हैं तो दिल्ली के बाहर की ओर लगने वाला दाब बढ़ जाता है और यह कर्ण पटल को अंदर की ओर दबाता है। इसी प्रकार, विरलन के पहुंचने पर कर्ण पटल बाहर की ओर गति करता है। इस प्रकार करण पटेल कंपन करता है। मध्यकाल में विद्यमान तीन हड्डियां (मुग्दरक,निभाई तथा वलयक) इन कंपनियों को कई गुना बढ़ा देती हैं। मध्य करण ध्वनि तरंगों से मिलने वाली इन द परिवर्तनों को आंतरिक कारण तथा संचारित कर देता है। आंतरिक करण में कर्णावर्त द्वारा दाग परिवर्तनों को विद्युत संकेतों में परिवर्तित कर दिया जाता है। विद्युत संकेतों को श्रवण तंत्रिका द्वारा मस्तिष्क तक भेज दिया जाता है और मस्तिष्क इन ध्वनि के रूप में व्याख्या करता है।


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