गुरु तेग बहादुर ।

आज के इस आर्टिकल में हम गुरु तेग बहादुर के बारे में जानेंगे। 

[गुरु तेग बहादुर सिखों के नौवें गुरु थे। ]उनका जन्म 1621 में पटियाला के पास अमृतसर में हुआ था। उनके पिता गुरु हरगोविंद [गुरु हरगोविंद सिखों के छठे गुरु थे] सिंह और माता माता गुजरी थीं।

गुरु तेग बहादुर बचपन से ही बहुत बुद्धिमान और तेजस्वी थे। उन्होंने गुरु नानक की शिक्षाओं का गहन अध्ययन किया। वह एक महान योद्धा भी थे।

1666 में, गुरु हरगोविंद सिंह ने गुरु तेग बहादुर को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। गुरु तेग बहादुर ने सिख धर्म का प्रचार करने के लिए पूरे भारत की यात्रा की। उन्होंने लोगों को धर्म की सच्चाई और शांति के मार्ग पर चलने का संदेश दिया।

उस समय, मुगल शासक औरंगजेब हिंदुओं और सिखों पर अत्याचार कर रहा था। उसने हिंदुओं को जबरन धर्मांतरित करने का प्रयास किया। कश्मीरी पंडितों ने गुरु तेग बहादुर से मदद मांगी।

गुरु तेग बहादुर ने औरंगजेब के सामने जाकर कहा कि वह हिंदुओं के धर्म की रक्षा के लिए अपना जीवन बलिदान करने के लिए तैयार हैं। औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर को इस्लाम कबूल करने के लिए कहा। गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम स्वीकार करने से इनकार कर दिया। औरंगजेब ने उन्हें 1675 में दिल्ली में चांदनी चौक पर फांसी दे दी।

गुरु तेग बहादुर की शहादत ने सिखों को और अधिक संगठित होने के लिए प्रेरित किया। उनके बलिदान ने हिंदू धर्म की रक्षा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

गुरु तेग बहादुर को "हिंद की चादर" के नाम से भी जाना जाता है। उन्हें सिख धर्म के सबसे महान गुरुओं में से एक माना जाता है।

गुरु तेग बहादुर के कुछ महत्वपूर्ण योगदान निम्नलिखित हैं:

  • उन्होंने सिख धर्म का प्रचार करने के लिए पूरे भारत की यात्रा की।
  • उन्होंने लोगों को धर्म की सच्चाई और शांति के मार्ग पर चलने का संदेश दिया।
  • उन्होंने हिंदुओं के धर्म की रक्षा के लिए अपना जीवन बलिदान किया।

गुरु तेग बहादुर की शहादत सिख इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। यह सिखों के लिए एक प्रेरणा है और हिंदू धर्म की रक्षा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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